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5 सितंबर,शिक्षक दिवस। जीवन की आपा- धापी में अपने क

5 सितंबर,शिक्षक दिवस।
जीवन की आपा- धापी में अपने कर्तव्य की याद दिलाने का एक सुनहरा अवसर। नौकरी करते करते एक निश्चित पाठ्यक्रम,एक निश्चित समय सीमा,निश्चित तरीका इन सबसे बंधकर ऐसा routine बन सा बन जाता है।किन्तु ये कुछ
अवसर वर्षभर के लिए एक ऊर्जा प्रदान करते हैं।आज छोटे छोटे मासूम से
बच्चे जिस अपनत्व के साथ शिक्षक विद्यार्थी के इस पावन संबंध को प्रकट
करने का प्रयास कर रहे थे वोअप्रतिम था।उनका ये स्नेहिल अपनत्व उनके भोलेमन का सहज उद्घाटन था।कक्षा कक्ष को सजाना,रंगोली बनाना
,दरवाजे से कुर्सी तक ग्रीन कारपेट बिछाना,फिर मनुहार के साथ कक्षा कक्ष
में बुलाना,प्रवेश करते ही कतार बद्ध खड़े बच्चों द्वारा पुष्प वर्षा,welcome की मधुर ध्वनि और उस ध्वनि में मिला आदर सम्मान,कुर्सी पर बिठाकर बच्चों द्वारा पैर छूना और बच्चियों का वह सादर अभिवादन,और तदुपरांत वह छोटी छोटी
सी भेंट जिनकी कीमत उनके हाथों और पवित्र भावों के सम्मिश्रण से अनमोल बन गई थी।शिक्षक को कभी भी अपेक्षाकृत श्रेय नहीं मिलता किन्तु बच्चों के
नन्हे नन्हे कोमल हाथों और कोमल मन से प्रदान किए गए ये उपहार मेरे लिए कई नोबेल पुरस्कारों से बढ़कर थे। मैं व्यक्तिशः डांट फटकार के साथ पिटाई भी कर देता हूं किसी भी बच्चे को उसकी किसी भी गलती पर,यह जानकर भी कि ये वर्तमान शिक्षा पद्धति के विपरीत है लेकिन उनकी गलती को सुधारने के लिए क्या उनके मां बाप उनको नहीं डांटते। मन में सदा यह रहता है कि भले ही हम
मां बाप नहीं लेकिन जिस पदवी को धारित कर बैठे हैं उस हिसाब से उनसे कम भी नहीं।इस शायद थोड़े रुक्ष व्यवहार के कारण वे नाराज
होंगे लेकिन ऐसा बिल्कुल न था।प्रभु से कामना है कि वो
तुम्हें सदैव उन्नति के पथ पर अग्रसर रखें,जीवन की अनंत
ऊंचाईयां तुम्हें प्राप्त हों और इसी तरह सहज,निर्दोष और
स्नेहिल बनाए रखें और हमें अपने कर्तव्य के प्रति संवेदनशील।।
🙏 जीतेन्द्र🙏

©Jitendra Singh
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