तुमने प्रेम किया नश्वर इंसानी जिस्मों से, तुम दुखी उसने प्रेम किया अमर प्रकृति से, वो महासुखी... {अनुशीर्षक पढ़ें जानने के लिए कि ऐसे प्रेम में कौन ???} आज मन किया वो लिखने का जो मैंने तब पढ़ा जब मैं नहीं लिख रहा था…कुछ दिनों पहले कुछ दिनों के लिए मैं थोड़ा शून्य में चला गया था, कह सकते हैं कि वानप्रस्थ अवस्था में…मैं ऐसा करता रहता हूँ हर कार्यछेत्र में कुछ दिनों के लिए उस आदत या व्यक्ति की परिधि से बाहर चला आता हूँ ताकि उसके बिना भी मुझे कैसे रहना है इसका अभ्यास हो सके और इसका यह कतई मतलब नहीं है कि मेरा उस कार्य से या व्यक्ति विशेष से प्रेम समाप्त हो गया...सत्य तो ये है कि उसी अवस्था में प्रेम की पराकाष्ठाओं का सृजन होता है मुझमें… तो इस दौर