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गूंजती है आवाज़ उसकी आज भी मेरे कानो में, जैसे मह

गूंजती है आवाज़ उसकी आज भी मेरे कानो में,

जैसे महकती है शराब पुरानी, बंद पड़े मयखानो में,,

सब कुछ चाह कर भी सब ले जा सकते नहीं,

यादें बना लेती हैं घोसला बंद पड़े मकानो में,,

रिम्मी बेदी नज़र

©NAZAR
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