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किताबों को पढ़ते-पढ़ते ना जाने जीने का हुनर आ गया

किताबों को पढ़ते-पढ़ते ना जाने जीने का हुनर आ गया ,
शब्दों को समझते समझते जीवन को समझ सजा गया ,
अंधकार युग जगत में वह ब्रह्मा ज्ञान मुझे दे गया ,
एक काव्य की तरह मेरे गुरु ने मेरा हुनर सवार दिया,
कहने को वक्त के बदलाव नहीं लाखों रिश्तो को बदला है,
कहने को तो सफलता की आयाम ने लाखों मकाम पाया है,
पर मेरे गुरु रूपी फूल ने मेरा जीवन कली से फूल तक ,
सफर तय करना मुझे सिखा गया,

किताबों को पढ़ते-पढ़ते ना जाने जीने का हुनर आ गया , शब्दों को समझते समझते जीवन को समझ सजा गया , अंधकार युग जगत में वह ब्रह्मा ज्ञान मुझे दे गया , एक काव्य की तरह मेरे गुरु ने मेरा हुनर सवार दिया, कहने को वक्त के बदलाव नहीं लाखों रिश्तो को बदला है, कहने को तो सफलता की आयाम ने लाखों मकाम पाया है, पर मेरे गुरु रूपी फूल ने मेरा जीवन कली से फूल तक , सफर तय करना मुझे सिखा गया,

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