वक्त के साथ साथ , इस दिल के कितने हिस्से हो गए एक ही दुनिया बसर थी इसमें, धीरे धीरे कितने शहर हो गए कुछ की राहों में फूल खिले, कुछ हिस्से पत्थर हो गए कुछ ने ओढ़ी धानी चुनर, कुछ सूखे शजर हो गए ज़हन में आता है, ना गुजर तू अब इन शहरों से है वक्त अब, उस मिट्टी को चूमने का जिसे मुट्ठी में लिए जाने कितने बरस हो गए OPEN FOR COLLAB✨ #ATleafpicturebg • A Challenge by Aesthetic Thoughts! ✨ Collab with your soulful words.✨ • Must use hashtag: #aestheticthoughts • Please maintain the aesthetics.