हसरतों के शिकार हुए हैं तभी तो बीमार हुए हैं ऐसी क्या बटी ज़मीन बटवारे दिल के चार हुए है उंगलियां से मुट्ठी बांधी न गई आघात सिलसिलेवार हुए हैं ऐसी हूक निकली सिसकियों से अश्क भी फनकार हुए हैं रात और दिन साथ साथ हैं तभी तो रिश्तेदार हुए हैं क्यों बनाए थे रेत के महल टूट के जार जार हुए हैं Dr KR Prbodh #silsile