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ओढी़ है जब से मैंने ओढ़नी तेरे नाम की, तेरे ही ख्व

ओढी़ है जब से मैंने ओढ़नी तेरे नाम की, तेरे ही ख्वाबों में खो गई।
बनकर तेरी बावरिया मेरे सांवरिया, मैं तो अपनी सुध बुध खो गई।

बांधकर तुझसे सात फेरों का, जन्मों जन्म का बंधन मैं तेरी हो गई।
रहूंगी सदा तेरी बनकर मेरी सारी खुशियां, सारी दुनियां तुझसे हो गई। 🌝प्रतियोगिता- 05 🌝
✨✨आज की रचना के लिए हमारा शब्द है ⤵️

🌷"ओढनी तेरे नाम की" 🌷

🌟 पहले सावधानी पूर्वक "CAPTION" पढ़ें और दिए हुए शब्द को ध्यान में रखते हुए अपने ख़ूबसूरत शब्दों एवं भावों के साथ अपने एहसास कहें।

 🌟 इस रचना में आपको सिर्फ़ 4 पंक्तियाँ लिखनी हैं, 4 पंक्तियों से कम या ज़्यादा में लिखी हुई रचना प्रतियोगिता में मान्य नहीं होगी।
ओढी़ है जब से मैंने ओढ़नी तेरे नाम की, तेरे ही ख्वाबों में खो गई।
बनकर तेरी बावरिया मेरे सांवरिया, मैं तो अपनी सुध बुध खो गई।

बांधकर तुझसे सात फेरों का, जन्मों जन्म का बंधन मैं तेरी हो गई।
रहूंगी सदा तेरी बनकर मेरी सारी खुशियां, सारी दुनियां तुझसे हो गई। 🌝प्रतियोगिता- 05 🌝
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