इस विश्व कमल की मृदुल धरा पर सब तेरी संचित माया है
अंतरिक्ष हो या नीलगगन सब तेरी अदृश्य काया है
सर्वत्र विद्यमान होकर भी तू किस भांति अचंभित करता है
अपना सब कुछ न्योछावर कर फिर भी तू क्यों चुप रहता है
अमल ज्योति स्वर्णिम तेज किन रत्नों से श्रृंगार करूं
संकुचित विवेक मेरा मन में एक किन शब्दों से व्याख्यान करूं