मन कर्म और वचन रखना शुद्ध सदा, इसी से ही तुम्हें प्राप्त होगा पुण्य अदा, पाप ले जायेगें अनचाही सी राहों पर, न आये अहम रहना ऐसी पनाहों पर। विधा:-काल्पनिक कहानी विषय:-(पाप और पुण्य) सम्पूर्ण कहानी पढ़ने हेतु कृपया अनुशीर्षक में पढ़े🙏🙏🙏🙏 विधा:-काल्पनिक कहानी विषय:-(पाप और पुण्य) शिरोमणी की नियुक्ति रक्षा विभाग में हो गई थी । तो सोमवार की सुबह वह अपना कार्यभार सम्भाल लेती है और दफ्तर में उपस्थित सभी प्रियजनों का साक्षात्कार दफ्तर की महोदया जी शिरोमणी से करवाती है सभी से साक्षात्कार के पश्चात वह सभी के व्यवहार का अंदाज़ा भी थोड़ा बहुत लगा लेती है। तो सबसे अज़ीम (प्रिय)जो व्यवहार लगा वह महोदया जी का लगा और महोदया जी शिरोमणी का लगाव भी हो जाता है। अब महोदया जी अपने पदानुसार सभी कार्य को अपनी निष्ठा से करती है।तो उनकी निष्ठा अन्य सभी कर्मचारियों को ज़्यादा पसन्द नही आती है। तो सभी कर्मचारी महोदया जी से उखड़े उखड़े रहते थे। फिर धीरे धीरे वो वक्त रहते सभी कर्मचारी शिरोमणी को महोदया जी के खिलाफ करने लग गए तो अब शिरोमणी के मन मे भी महोदया जी के लिए पहले वाली बात नही रही। अब महोदया जी जिसे भी काम के लिये कहती वहीं महोदया जी के सिर सवार रहने लगता अब महोदया जी की बात कोई भी न मानता और न ही सुनता था ।हर कोई उन से मुँह फेरने लगता परन्तु महोदया जी अपने काम को करवाने में अपनी निष्ठा न त्यागती और अपनी दैनिक दिनचर्या में वह सबसे अच्छा काम करती थी कि वह कुत्तों को रोजाना कभी दूध, कभी रोटी मतलब कुछ न कुछ जरूर देती थी। तो यह सब देख सभी कर्मचारी कहते कि इसे तो बस कुतो से ही प्यार है और इतना ज़ुल्म हम लोगों पर करती है भगवान इसे नरक के दर्शन देगा। बस इसी कुलष में रोज ही दफ्तर को युद्ध का अखाड़ा बनाये रखते थे। रोज रोज कोई न कोई महोदया जी की कमी निकाल कर चला जाता था क्योंकि सभी कर्मचारी महोदया जी के ख़िलाफ़ उन के भी कान भर देते थे ।अब सभी के समकक्ष महोदया जी एक अतिदुष्ट महिला की छवि के रूप में नजर आने लगी। फ़िर अचानक एक कोरोना नामक महामारी का संक्रमण हो जाता है इस महामारी के दौरान महोदया जी व शिरोमणी की मौत हो जाती है।तो दोनों की आत्मा को यमराज के साथ ले जाया जाता है। तो शिरोमणी की आत्मा को नरक के द्वार ले जाया जाता है और महोदया जी की आत्मा को स्वर्ग के द्वार ले जाया जाता है। इस पर शिरोमणी यमराज से पूछ ही लेती है। हे प्रभु!ऐसा घोर अन्याय वो भी आपके दरबार मे आख़िर ऐसा क्यो????आपने तो सब देख होगा कि महोदया जी कैसे हम सभी कर्मचारियों पर रोज़ ज़ुल्म ढहाती थी और हमारा सभी का जीना दुभर कर रखा था ।रोज रोज़ हमें सताया करती थी।तब भी आप महोदया जी को स्वर्ग के द्वार ले जा रहे हो???? यमराज:-हे बालिके ! आप ने बेशक़ से बहुत ही अच्छे कर्म किये हो परन्तु आप के मुख से निकले प्रत्येक शब्द आपके कर्मों का पाप और पुण्य का लेखा जोखा मेरे पास आता तो वह मात्र नरक के सिवा कहीं और न ले जाता है।और आप केवल पृथ्वीलोक के लोगों के सामने बाहरी रूप से अच्छे थे परन्तु मन कर्म व वचन से आप महोदया जी से भी अति दुष्ट थे। पाप और पुण्य का भाव इन्हीं तीन बातों से लगाया जाता है मन,कर्म व वचन से।