सुनो प्रिय तुम बिन अधूरा सा लगने लगा हूं खोजता रहता हूं मैं खुद को पर हर बार तुम बिन खुद को अकेला पाता हूं तुम्हारी हल्की मुस्कान यादों का सहारा बन गई हैं। तुम्हारी बोलती हुई तस्वरें मेरे मन में छप सी गई हैं और तन्हाइयो में मेरा हाल पूछा करती हैं। कैसे हो तुम? और हम भी तुम्हारी तस्वीर से कुछ नहीं छुपाते बोल देता हूं तुम बिन मै अधूरा सा हूं। ©Dilip Sahani तुम बिन अधूरा सा हूं। komal sindhe