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प्रिय प्रवीण दादा, नमस्ते..! बहुत दिनों से सोच र

प्रिय प्रवीण दादा,

नमस्ते..!

बहुत दिनों से सोच रहे है कि एक खास पत्र लिखा जाए और जब खास की बात हो तो आप हमेशा सबसे खास हैं!

दादा, आपके लिए क्या लिखे, आप ख़ुद हर विधा में पारंगत हैं और आपके लिखे नग्मे इस बज़्म की जान है!

जब आप इजाज़त लेकर दुबारा उन्हीं से चाहत करना चाहते है, क्या कहूँ इसे पढ़कर एक शेर याद आता है,

सबीन साहब कहते हैं कि -

तुम्हारे ख़्वाब की ता'बीर हो जाऊँ इजाज़त है
मोहब्बत की मैं इक तस्वीर हो जाऊँ इजाज़त है! आपकी लिखी हर नज़्म अपने आप में पूरी कहानी है, आपका लिखने के लिए प्रेम देखकर हमें भी लिखने से और प्रेम हो जाता है!

प्रवीण दादा, आपकी बवाल गिरी सच में बहुत बवाल करती है और आशा करता हूँ आप यूँ ही बवाल गिरी मचाते रहेंगे! 

एक गुज़ारिश है दादा, दिन में कम से कम एक नगमा हम जैसे चाहने वालों के लिए जरूर लिख दिया करो..!

पत्र का अंत नहीं होता मेरा ऐसा मानना है क्योंकि अंत हुआ तो दुबारा ना लिखा जाएगा,.. इसको थोड़ा यहाँ विराम दे रहा हूँ ताकि आपके लिए दुबारा लिखूं, तिबारा लिखूँ..!
प्रिय प्रवीण दादा,

नमस्ते..!

बहुत दिनों से सोच रहे है कि एक खास पत्र लिखा जाए और जब खास की बात हो तो आप हमेशा सबसे खास हैं!

दादा, आपके लिए क्या लिखे, आप ख़ुद हर विधा में पारंगत हैं और आपके लिखे नग्मे इस बज़्म की जान है!

जब आप इजाज़त लेकर दुबारा उन्हीं से चाहत करना चाहते है, क्या कहूँ इसे पढ़कर एक शेर याद आता है,

सबीन साहब कहते हैं कि -

तुम्हारे ख़्वाब की ता'बीर हो जाऊँ इजाज़त है
मोहब्बत की मैं इक तस्वीर हो जाऊँ इजाज़त है! आपकी लिखी हर नज़्म अपने आप में पूरी कहानी है, आपका लिखने के लिए प्रेम देखकर हमें भी लिखने से और प्रेम हो जाता है!

प्रवीण दादा, आपकी बवाल गिरी सच में बहुत बवाल करती है और आशा करता हूँ आप यूँ ही बवाल गिरी मचाते रहेंगे! 

एक गुज़ारिश है दादा, दिन में कम से कम एक नगमा हम जैसे चाहने वालों के लिए जरूर लिख दिया करो..!

पत्र का अंत नहीं होता मेरा ऐसा मानना है क्योंकि अंत हुआ तो दुबारा ना लिखा जाएगा,.. इसको थोड़ा यहाँ विराम दे रहा हूँ ताकि आपके लिए दुबारा लिखूं, तिबारा लिखूँ..!