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वो जो गैर हैं ,वो जो दूर हैं वो ज़रा से मुझमे ज़ुरूर

वो जो गैर हैं ,वो जो दूर हैं
वो ज़रा से मुझमे ज़ुरूर हैं
मैं जल रही हूँ  जिस लिए 
वो हवा से पागल फितूर हैं
वो जो बेसुकूँ सा मिज़ाज़ है 
जो दर्दे ग़म का रियाज़ हैं
वो तार मुझसे हैं जुड़े हुए 
उन्हें छेड़ते वो ज़ुरूर है
वो हैं दास्तां ,मैं हूँ एक सफा
मैं रहूँ न रहूँ क्या फर्क है
न पलट रहै हैं वो मुझे
न पढ़ते मुझको हुज़ूर हैं
वो गुनाह हैं सच बात है
सौ बार उनको मैं करूँ 
वो खुदा का दर है, 
ये मेरा सर्
ये गुनाह मुझको कुबूल है ।
ऋचा
27/9/2019
वो जो गैर हैं ,वो जो दूर हैं
वो ज़रा से मुझमे ज़ुरूर हैं
मैं जल रही हूँ  जिस लिए 
वो हवा से पागल फितूर हैं
वो जो बेसुकूँ सा मिज़ाज़ है 
जो दर्दे ग़म का रियाज़ हैं
वो तार मुझसे हैं जुड़े हुए 
उन्हें छेड़ते वो ज़ुरूर है
वो हैं दास्तां ,मैं हूँ एक सफा
मैं रहूँ न रहूँ क्या फर्क है
न पलट रहै हैं वो मुझे
न पढ़ते मुझको हुज़ूर हैं
वो गुनाह हैं सच बात है
सौ बार उनको मैं करूँ 
वो खुदा का दर है, 
ये मेरा सर्
ये गुनाह मुझको कुबूल है ।
ऋचा
27/9/2019
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