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निर्मल मन जन सो मोहि पावा,मोहि कपट छल छिद्र ना भाव

निर्मल मन जन सो मोहि पावा,मोहि कपट छल छिद्र ना भावा ।

भावार्थ = वेद पुराणों में ईश्वर ने कहा है कि निर्मल,साफ और सरल
स्वाभाव वाला मानव ही मेरे मन को भाता है अर्थात मुझे सबसे ज्यादा
प्रिय लगता है लेकिन जो मानव अपने अंदर छल,कपट और अनेक 
प्रकार के बुरे भावों को अपने अंदर रखते हैं ऐसे मानव मुझे तनिक 
भी नहीं भाते हैं और ऐसे मानवों से में सदैव अप्रसन्न ही रहता हूं।

©"pradyuman awasthi" #निर्मल तन,मन
निर्मल मन जन सो मोहि पावा,मोहि कपट छल छिद्र ना भावा ।

भावार्थ = वेद पुराणों में ईश्वर ने कहा है कि निर्मल,साफ और सरल
स्वाभाव वाला मानव ही मेरे मन को भाता है अर्थात मुझे सबसे ज्यादा
प्रिय लगता है लेकिन जो मानव अपने अंदर छल,कपट और अनेक 
प्रकार के बुरे भावों को अपने अंदर रखते हैं ऐसे मानव मुझे तनिक 
भी नहीं भाते हैं और ऐसे मानवों से में सदैव अप्रसन्न ही रहता हूं।

©"pradyuman awasthi" #निर्मल तन,मन