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ओ आयशा ! आख़िर क्यूँ मर गई तुम

                   ओ आयशा ! आख़िर क्यूँ मर गई तुम ?
                   दहेज दानवों से इतना क्यूँ डर गई तुम ?
सुनता आया  हूँ-  तुम दुर्गा हो, काली हो.
जीवन को  तुम ही तो जन्म देने वाली हो.
फिर अपने ही जीवन से क्यूँ  हहर गई तुम ?
ओ आयशा !   आख़िर  क्यूँ  मर  गई तुम ??
                    तुम अबला नहीं हो, शक्ति का अवतार हो.
                    सदियों से बारम्बार, जग की तारणहार हो.
                    फिर किस भय से  इतना सिहर गई तुम??
                    ओ आयशा !  आख़िर क्यूँ मर गई तुम ??
जगत्‌जननी होकर भी तुमने ये कैसा संदेश दिया?
क्यूँ नहीं  विप्लव को  अपना  तांडव नृत्य किया?
क्यूँ नहीं कलेजे भेद दिए तुमने अपनी बरछी से?
क्यूँ नहीं धरा को राक्षसों के लहू से संतृप्त किया?
                    कब तक तेरी ममता   तेरा ही गला घोंटेगी?
                    कब तक तेरी संताने ही, तेरी बोटी नोंचेंगी?
                    कब तक बनी रहोगी, तुम आख़िर अबला?
                   आख़िर कब तू जागेगी,अपना हित सोचेगी?
कहानियों के चरित्र से  तुम स्वयं को मुक्त करो.
ममता का आवरण त्यज, चक्षु अपने क्रुद्ध करो.
लक्ष्मीबाई, सुभद्रा, इंदिरा;  सब तो  तुम ही हो!
डर कर मरो नहीं, अस्तित्व की ख़ातिर युद्ध करो!! A tribute to Aayesha.

Picture has been taken from a viral video on facebook.

ओ आयशा ! आख़िर क्यूँ मर गई तुम ?
दहेज दानवों से इतना क्यूँ डर गई तुम ?

सुनता आया  हूँ-  तुम दुर्गा हो, काली हो.
                   ओ आयशा ! आख़िर क्यूँ मर गई तुम ?
                   दहेज दानवों से इतना क्यूँ डर गई तुम ?
सुनता आया  हूँ-  तुम दुर्गा हो, काली हो.
जीवन को  तुम ही तो जन्म देने वाली हो.
फिर अपने ही जीवन से क्यूँ  हहर गई तुम ?
ओ आयशा !   आख़िर  क्यूँ  मर  गई तुम ??
                    तुम अबला नहीं हो, शक्ति का अवतार हो.
                    सदियों से बारम्बार, जग की तारणहार हो.
                    फिर किस भय से  इतना सिहर गई तुम??
                    ओ आयशा !  आख़िर क्यूँ मर गई तुम ??
जगत्‌जननी होकर भी तुमने ये कैसा संदेश दिया?
क्यूँ नहीं  विप्लव को  अपना  तांडव नृत्य किया?
क्यूँ नहीं कलेजे भेद दिए तुमने अपनी बरछी से?
क्यूँ नहीं धरा को राक्षसों के लहू से संतृप्त किया?
                    कब तक तेरी ममता   तेरा ही गला घोंटेगी?
                    कब तक तेरी संताने ही, तेरी बोटी नोंचेंगी?
                    कब तक बनी रहोगी, तुम आख़िर अबला?
                   आख़िर कब तू जागेगी,अपना हित सोचेगी?
कहानियों के चरित्र से  तुम स्वयं को मुक्त करो.
ममता का आवरण त्यज, चक्षु अपने क्रुद्ध करो.
लक्ष्मीबाई, सुभद्रा, इंदिरा;  सब तो  तुम ही हो!
डर कर मरो नहीं, अस्तित्व की ख़ातिर युद्ध करो!! A tribute to Aayesha.

Picture has been taken from a viral video on facebook.

ओ आयशा ! आख़िर क्यूँ मर गई तुम ?
दहेज दानवों से इतना क्यूँ डर गई तुम ?

सुनता आया  हूँ-  तुम दुर्गा हो, काली हो.