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ग़ज़ल मुहब्बत का' होगा असर धीरे धीरे। ज़माने को

ग़ज़ल 

मुहब्बत का' होगा असर धीरे धीरे। 
ज़माने को' होगी  ख़बर  धीरे धीरे॥ 
 
जो' करके गए थे मुहब्बत का' वादा, 
वो'  होते   गये   बेख़बर   धीरे धीरे। 

सनम जब  से तुम बेवफा हुए हो , 
मुहब्बत के' सूखे शजर धीरे धीरे।

तरन्नुम मे'  मैंने ग़ज़ल जब पढ़ी तो , 
हुई  मस्त महफ़िल, नगर धीरे धीरे।

जिधर देखिए अब दरिंदे खड़े हैं , 
बशर हो रहा जानवर धीरे धीरे ।

सभी  के लिए अनु दुआ  माँगती है, 
मिले सबको शुहरत मगर धीरे धीरे।
--अनामिका "अनु"
      गया , बिहार शायरी की ग़ज़ल
ग़ज़ल 

मुहब्बत का' होगा असर धीरे धीरे। 
ज़माने को' होगी  ख़बर  धीरे धीरे॥ 
 
जो' करके गए थे मुहब्बत का' वादा, 
वो'  होते   गये   बेख़बर   धीरे धीरे। 

सनम जब  से तुम बेवफा हुए हो , 
मुहब्बत के' सूखे शजर धीरे धीरे।

तरन्नुम मे'  मैंने ग़ज़ल जब पढ़ी तो , 
हुई  मस्त महफ़िल, नगर धीरे धीरे।

जिधर देखिए अब दरिंदे खड़े हैं , 
बशर हो रहा जानवर धीरे धीरे ।

सभी  के लिए अनु दुआ  माँगती है, 
मिले सबको शुहरत मगर धीरे धीरे।
--अनामिका "अनु"
      गया , बिहार शायरी की ग़ज़ल