Ye shayri meri ldkiyo ko ना जाने ये लडकिया कितना दर्द सहती है मां की लाडली अब मां बिन अकेली ससुराल में रहती है सासु के ताने सुन देवर की फटकार पर ये कुछ ना कहती है ना जाने ये लड़किया कितना दर्द सहती है । पीरियड में भी काम करती पूछने पे ठीक हु कहती है ये नदी की तरह है जाकिर जो १२ महीने बहती है भाई की लाडली याद आए तो रो लेती पर भाई से कुछ ना कहती है ना जाने ये लड़किया कितना दर्द सहती है । दिन गुजर जाता तानो से मां बाप को पता चले उससे पहले बात बदल देती बहानों से पर ये घर पे कुछ ना कहती है ना जाने ये लड़किया कितना दर्द सहती है । पीरियड के टाइम मंदिर जाना मना है मस्जिद जाना मना है पर ये लड़किया कुछ ना कहती है ये ठंडी हवा है अंधेरी गुफा की जो कुछ पल पीहर रहती है ना जाने ये लडकिया कितना दर्द सहती है । #jakir ©JAKIR HUSAIN #LostInSky