काश किसी शायर की मुहब्बत हो जाऊँ। लफ्ज़-ब-लफ्ज़ वो मुझे निखार दे।। जिंदा रहूँ उम्र के बाद भी मैं, ऐसे इतिहास में वो मुझे उतार दे।। पन्नों पर जैसे उभर आती है श्याही, ऐसे वो मुझे खुद पर उभार दे।। अपनी लिखावट से जो महसूस हो, एहसास ऐसे वो मुझे हजार दे।। शब्दों को जैसे रहता सजाता, ऐसे जूल्फें वो मेरी संवार दे।। बहकने लगूँ इश्क में गर मैं, अपनी गजलों से वो मुझे बाँध दे।। मैं गुनगुनाती सी उसकी सुबह हो जाऊँ, वो प्यारी सी मुझे एक शाम दे।। जैसे अपनी किसी अधूरी शायरी को देखता, ऐसे एक आध बार वो मुझे निहार दे।। मैं अपनी उसे जरूरत बना लूँ, वो जिंदगी मान मुझे गुजार दे।। काश किसी शायर की मुहब्बत हो जाऊँ। लफ्ज़-ब-लफ्ज़ वो मुझे निखार दे।। ©Deepu #love_writing