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"न रुकना हैकभी थककर, न हिम्मत हार जानी है। कर्म क

"न रुकना हैकभी थककर, 
न हिम्मत हार जानी है।
कर्म करना निरंतर मुश्किलों में,
यही तो जिन्दगानी है। "
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ये है बरसात का पानी-
गिरेगा बादलों से जब,
न सोखेगी धरा सारा,
बहेगा कुछ धरातल पर।

मिलेंगे कुछ मृदा के कण,
चलेंगे तृण भी कुछ संग-संग,
ठहर जाएगा यदि गिरकर,
तो फिर दुर्गंध देगा।

मगर बन धार ये जल की,
रखेगा हौसले मन में,
बढ़ेगा  राह पर दुर्गम.
चलेगा प्रस्तरों पर भी।

बनेगा धार तब  निर्मल 
वही बन शुध्द जल एक दिन,
जीव को प्राण देगा....

©पूर्वार्थ
  #संघर्ष_ए_जिंदगी