ओंस की बूँद चेहरे पर पड़ रही थी। थी बो क्या सकूण जो तन मन में मचल रही थी, इससे पहले मेरा मन इतना न कभि हरषाई थी, कूदरत की इतनी प्यारी संपर्क कभि न मैंने पाई थी #कवित,#nature,#nojoto,#poetry