यह वही धातु है... जो दौड़ती है देह में रक्त की तरह.... जो दौड़ती है कविता में वक़्त की तरह... यही धातु पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश यही रूपांतरित मेरी भाषा में जैसे , यही साकार मेरे आकार में !