*गाय और स्त्री* गाय खड़ी है आंगन ज्यों भोजन मांग रही आशान्वित स्वरों से मां–मां पुकार रही। देहरी पर आकर गृहिणी गऊ को भोग लगा रही नैनो में अश्रु लिए मां को मां पुचकार रही। द्रवित हृदय, निशब्द हो दोनो एक दूजे को निहार रही। आपस में अपने जीवन की व्यथा बांट रही। 👇यहां नीचे से पढ़ें. गाय खड़ी है आंगन ज्यों भोजन मांग रही आशान्वित स्वरों से मां–मां पुकार रही।