किसी की आंखों में खून का सैलाब देखा है| जिस्म पड़ा है रू को तड़पते बेहाल देखा है किसी की आंखों में| ला से बुला रही हैं अपनों को आवाज देकर| हर शख्स रो रहा है मौत के मंजर देख कर| किसी की आंखों में| अपनों के होते हुए लावारिस हो गए हम| घर था अपना फिर भी बेघर हो गए हम किसी की आंखों में| जख्म जिसने दिए वही मरहम बांटते यारा| जो मेरे नहीं हुए वह तेरे क्या होंगे दोबारा| किसी की आंखों में| उन्हें फुर्सत नहीं रेली और विदेश जाने से| यहां देश मर रहा है दाने दाने से और खाने से| किसी की आंख में| यह लगे हैं जोशी कुर्सियां बचाने में और मैं खाने में| देश जूझ रहा यहां जान बचाने में मुर्दों को जलाने में| किसी की आंख में|6 ©joshi joshi diljala Kursi bachane mein