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मैं जी रहा हूँ तुझे अपनी खुद की दुनिया में, थाम र

मैं जी रहा हूँ तुझे अपनी खुद की दुनिया में, 
थाम रखा है मेरे हाथों को तेरे हाथों में। ‌‍
मुझे डर नहीं है वहाँ तुझे खोने का, 
मेरे जज़्ब मे वजूद है तेरे होने का। 
हकीकत के जैसे मुझे सोचना नहीं पड़ता है, 
हकीकत के जैसे कोई इंतज़ार नहीं करना पड़ता है, 
बस, मैं खुद को ढूंढता हूँ और तू सामने आ जाता है। 
न जाने कितनी बेतुकी बातें होती रहती है, 
न जाने कितने किस्से लम्हों में गुज़रती रहती है, 
तू यूही अपने सिर को मेरे सीने से लगाकर सोयी रहती है। 
पर ये दुनिया मेरी बनायी हुई, शायद उस दिन खत्म हो जाए, 
तू रहे मेरी सासों में पर ज़िन्दगी किसी और की बन जाए।

©Ananta Dasgupta
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