झरोखों से रोशनी आती है आती है झरोखों से रोशनी जो अंधेरे में जुगनू से ख्वाब लाती है जो जंजीरे अंधेरों को जकड़े बैठी हैं वही जंजीरे आसमान में उड़ाती हैं है तो चप्पल पैरों में वो समय से पहले ही घिस गई है पर है मेहनत मैं वो लिबाज जिसके आगे सारी मुसीबतें पीस गई है आज भी वही प्यास है गिरकर उठ कर चलने का वही एहसास है बस फर्क इतना के समय मुट्ठी में कम है पर आज खुद से ज्यादा लड़ने का दम है है निशान मेरे तन पर खंजर के वही निशानी मुझको मैं में मैं बनाती है आती है झरोखों से रोशनी जो अंधेरे में जुगनू से ख्वाब लाती हैं please share more and more