आ गया हूं मैं अब जिन्दगी के उस मोड़ पर जहां जिन्दगी के मायने हर रोज बदलने लगे हैं ख्याब बुनने का वक्त अब नहीं मिलता सबको ख्याब बनने से ज्यादा अब पिघलने लगे हैं कभी रहना चाहते थे महफूज चार दीवारों में अब हमीं है जो बाहर निकलने लगे हैं बढ़ा महफूज कर रखते थे हर एक एहसास को इतने बिगड़े है कि अब खुद ही कुचलने लगे हैं मैं तो आसमां से फिसलकर जमीं पे आ गिरा वो कहां गिरेंगे जो जमीं पर ही फिसलने लगे हैं अभी बाज के पंख आने पर उड़ान देखना कुछ है शुतुरमुर्ग जो अभी से उछलने लगे हैं #changingeverytime #changinglife #this is changing time #myseld_question #confidence