"जीवन का प्रत्येक कर्म एक उचित कालखण्ड में ही संपादित होने पर फलीभूत होता है। उदाहरण - यदि अधेड़ उम्र अक्षर ज्ञान प्राप्त किया जाये एवं उद्यमवृत्ति का प्रयास जीवन के अंतिम क्षणों में हो तो वह फलसाध्य नहीं रह जाता कारण असमय प्रबंधन। अवसरों के कालक्रमों के अनुकूल कार्ययोजनाओं का शून्य हस्तक्षेप के साथ संपादन होना चाहिए, संतति जीवन के विकासपथ में किसी भी पूर्वाग्रही विचारधारा के कारण अवरोध बनने से बचे रहना उसके संरक्षकों का नैतिक दायित्व होता है जिसके अनुपालन को अनिवार्यतः सुनिश्चित किया जाना चाहिए।" मत राहों में अवरोध बनो गंतव्य पुत्र को चुनने दो, अपने अतृप्त अभिलाषाओं का ग्रास उसे मत बनने दो। उसके भी ख्वाबों की दुनिया शायद बिखरी है यहीं कहीं, तुम जिसको मूढ़ समझते हो वो है चेतन का वृक्ष कहीं।। उसके स्वप्नों की उर्वरता के पोषक तत्व तुम्हीं तो हो, उसकी अलका के शिल्पहार हर जीवनरंग तुम्हीं तो हो।