तुझे रास नहीं आएगी इतनी खुदपरस्ती ऐ दिल ! थोड़ा तो लोगों से मिलके चला कर !! शीशी में उतार लेंगे तेरी महक सारी ! "गुलिस्तां में यूँ बेबाक न ख़िल के चला कर !! नमक की मण्डी में उतरने से पहले । "बखिए ज़ख्मों के ज़रा सिल के चला करा!! तुझे नोच खाएगें इस शहर के ये मसीहे ! तेवर अपने कुछ तो बदल के चला करं !! किसके लिए हैं "जग्गी" ये तेरी जाफ़रानी ग़ज़लें ! रुख बदल अब इनका, अब न मचल के चला कर!| ©Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...! #ऐ_दिल #Time