बनना चाहती थी रूह तुम्हारी तुम्हारा पैरहन भी न बन सकी लिपट जाती तन से तुम्हारे उससे पहले ही तर्क कर दी गयी एक सिलवट तक तो मुझ पे पड़ी न तुम्हारी कोरी की कोरी रह गयी बनना चाहती थी रूह तुम्हारी तुम्हारा पैरहन तक न बन सकी musings - 7/9/18