कांटे रहे उस राह में,जख्मी है कदम अबतक, प्यार जिंदा है मगर और,जिंदा है हम अबतक, तेरे सिवा किसी और को,कभी न चाहेंगे सनम, कसम हमसे न टूटी नही है,वो कसम अबतक, कुछ निशानी जो मिली है,उन गुनाहो की हमें, दिल ने संभाला है,ये तोहफा-ए-गम अबतक, होश में आये जब,वाकिफ हुए,तेरी फितरत से, बस समझ न पाये,तेरे जाने का सबब अबतक, अब तुम्हें अपना कहे,या अमानत-ए-गैर समझे, पर नादाँ दिल तुम्हें समझता है,अपना अबतक, मै लिखता हूँ,अपने अश्कों को रोशनाई बनाके, सब दर्द से भरी है,जो लिखी है गज़ले अबतक, लौट आओ फिर करो,इज़हार-ए-मोहब्बत सनम, बस इसी उम्मीद पे जिंदा है,शायद”मन”अबतक,