कलुषित कैसे है विचारधारा जो दूसरों को गलत कहने में समय अपना लगाते हैं, और शान से फिर वही काम सबके सामने दोहराते हुए तनिक नहीं शरमाते हैं, परवरिश पर होती है बहुत आश्चर्य, कैसे मां-बाप अपने बच्चों को सही-गलत का भेद नहीं बताते हैं, उस संस्कार का क्या मतलब? जो बेटियों को उनका नारीत्व का अहसास नहीं कराते हैं, उस बड़बोलेपन का क्या मोल, जो नारी को उसके चरित्र की अहमियत जरा भी नहीं सिखाते हैं, कैसे कोई आत्मसम्मान को ताक पर रख , मजबूरी के सौ नाम गिनाते हैं, और फिर सबकुछ नजरअंदाज कर, दूसरों की कमाई पर रोटियां तोड़ते हुए सुकून से रह पाते हैं, गंदी लिप्सा से ग्रसित फिर दूसरों को ही आंख दिखाते हैं, फूट डालो और राज्य करो की नीति क्या खूब वो निभाते हैं।। कहानी live-in-Relationship की😢 आजकल न जाने क्यों ये आम हो रहा है!!दुखद है😓 हां,करते हैं परवरिश में गलतियां मां-बाप कभी कभी तभी तो बच्चे (लड़कियां)अपने आत्मसम्मान का कदर नहीं समझते।।या फिर उन्हें अच्छा लगता हो,,ईश्वर रक्षा करें उनकी 🙏 पर उन लड़कियों का क्या जो अपने माता पिता को देवता बताते हैं,उन्हें पूजने का जिक्र करते हैं ,उनके दिए गए संस्कार (दीक्षा) से पूर्णत संतुष्ट हैं और ना जाने उन्हीं(माता पिता) के पीठ पीछे क्या क्या नहीं करते हैं,,क्या तब उन्हें अपने इज्जतदार मां बाप का ख्याल नहीं आता?क