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जब न कटे जिन्दगी की रात, तो खुद को रूला लिया होता

जब न कटे जिन्दगी की रात,
 तो खुद को रूला लिया होता।
बहाना अच्छा था, तन्हाई थी,
ग़मे दास्तां छुपा लिया होता।

क्या देखोगे दिल के झरोखे में तेरा नाम ही तो है?
चाहो तो धड़कनों से पूछ लो, खुलेआम ही तो है।
ये जाम मेरी जिन्दगी का शुकूँ बनके लौट आया है,
अभी तो मैं होश में हूँ पीने दो अभी शाम ही तो है।

छुप के अपनी तन्हाई से कहाँ जाओगे?
जहाँ जाओगे वहाँ खुद ही को पाओगे।

दिल के राज़ को अज़मत-ए-ग़म रहने दो।
मुस्कुराओ जी भर के, आँखें नम रहने दो।
राज़ इस दिल का,राज़ ही रहे तो अच्छा है,
ये हँसी, अफ़सुर्दा हैं, इसमें वहम रहने दो।

----राजेश कुमार
गोरखपुर(उत्तर प्रदेश)
दिनांक:-19/07/2023

©Rajesh Kumar
  #delusion