मंटो मेरे ख्वाब मे रोज़ आते थे कहानी लिखने का कहते डांटते चिल्लाते डराते की लिखो वरना मेरी कलम वापस करो जिसपर तुमने कब्जा कर रखा है में लिखता हूं लिखता चला जा रहा हूं में हर उस चीज़ पे लिखता जिसे समाज अपनाने से इंकार करता नफरत की नजर से देखता हर उस चीज़ पर लिखता चला गया औरत मर्द तवायफ हिजडे रंडी प्यार मुहब्बत जिस्म हवस मैंने जितना मंटो से सीखा सब लिखता सच का आईना लिखता चला गया पर आजकल ऐसा लगता है मंटो नाराज़ हैं मुझसे ख्वाब मे नही आते मेरे आजकल पता नी क्य यही वजह है की में आजकल उनके जैसा लिखने को तड़प रहा हूं…. Ashab Khan मंटो..