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रात की आगोश में, मदहोशी सी छाई है। जाने कैसी ऋतु ह

रात की आगोश में,
मदहोशी सी छाई है।
जाने कैसी ऋतु है ये,
जाने कैसी अंगड़ाई है।
खिल रहा बसंती चहुंओर,
आमों पर अमराई है,
मन चंचल सा भटक रहा,
जाने कैसी तरुणाई है।
फूलों पर भवरें डोल रहे,
रुत जैसे मिलन की आई है।
अंग अंग में रंग भर रही,
चल रही मस्त पछुआई है।
प्रकृति का है ये मिलन काल
इसलिए ये धरा मुस्काई है।
पर ऐ बसंत तू किस काम का मेरे,
अभी यहां तनहाई है।
रात की आगोश में ,
मदहोशी सी छाई है। #बसंती रातें
#Flower
रात की आगोश में,
मदहोशी सी छाई है।
जाने कैसी ऋतु है ये,
जाने कैसी अंगड़ाई है।
खिल रहा बसंती चहुंओर,
आमों पर अमराई है,
मन चंचल सा भटक रहा,
जाने कैसी तरुणाई है।
फूलों पर भवरें डोल रहे,
रुत जैसे मिलन की आई है।
अंग अंग में रंग भर रही,
चल रही मस्त पछुआई है।
प्रकृति का है ये मिलन काल
इसलिए ये धरा मुस्काई है।
पर ऐ बसंत तू किस काम का मेरे,
अभी यहां तनहाई है।
रात की आगोश में ,
मदहोशी सी छाई है। #बसंती रातें
#Flower