क्यों चंदन सा लेप लगाते हो जख्मों पर जब हमको इस तप्त अग्नि में ही जलना है क्यों बांध रहे हो हमको झूठे भरम जाल में जब तुमको सुलझी राहों पर ही चलना है... !! घाव उफनते या बिखरते है , नजर आते हैं खुश्क आंखों में भी अब अश्क उतर आते हैं ************ जिद्द भी बस जिद्द पे ही अड़ी होगी राह भी राह पर खड़ी होगी झूठ हरइक लकीर में होगा