ख्वाब कभी हकीकत में बदलकर नहीं आया यार कभी तस्वीर से निकलकर नहीं आया वक़्त का तकाज़ा देकर आया तो मिलने मुझे दोस्त बन के आया मेहबूब बनकर नहीं आया यूं तो कुछ नहीं करता पर गजब करता है आइने से मिला खुद से मिलकर नहीं आता वो आया तो मिलने जल्दबाजी की हड़बड़ी में गिरा और चोट खा गया संभलकर नहीं आया जब गिरा वो तो ज़ख्म भी गहरा लगा उसे नादान है की साथ मरहम रखकर नहीं आया बेबस जिंदगी में 'ओजस' सुकूं कहां किसी को चुनरी तो लाया मगर सर ढककर नहीं आया स्वरचित मौलिक रचना ✍️@राजेश राजावत🖋️"ओजस" ( दतिया , मध्य प्रदेश ) ©Ozas Praveen Storyteller