रोजगारी काला कहिथे, ए शब्द ला तो हम छत्तीसगढ़िया मन भुला गे हन। बेरोज़गारी के कतेक किस्सा ला, मन के खीसा मा धरके ओखर दुःख ला भुलवा दे हन। पढ़ाई करे बर घर बेचेन,दाई के गहना घलो बेचेन तब जाके डिग्री ला पाएंव। दाई-ददा के आँशु घलो आईस, जब में उमला अपन डिगरी ला में देखाएंव। फेर में सोचेव हमर दुःख के बेरा ह अब टल जाहि, अव्वल दर्जा के डिगरी धरे हों नौकरी घरा मिल जाहि, दाई-ददा के सपना ला नव मुकाम घला मिल जाहि। फेर काल के परकोप ला मेंहा कंहाँ जान पाएंव, डिगरी ला तो पा गेवं फेर सरकारी नौकरी कँहा ले पाएंव। दाई-ददा के आस ह अब निराशा कस बदल गईस, मंदिर मा पूजा कराईया मोर बहिनी, दहेज के पीरा मा मर गिस। कलेक्टर बने के सपना रिहिस, फेर चपरासी के नौकरी तको नई पाएंव। पीएचडी के डिग्री धरके ना जाने , कतेक आफिस के दरवाजा खटखटाएवं। तब जा के मैं ह अपन आखरी परयास ला मारेंव सरकार ला गोहार लगा के,अपन दुःख ला बिरचाएंव। सरकार घलो मोर पीरा ला सुनके मगरा कस आँशु बहाइस, दूसर दिन दू ठक रेल्वे के पोस्ट निकाल के, मोर आत्मा ल अउ डहडहवाईस। ओ दिन से मेंहां रोजगारी शब्द ला भुला गे हंव, बेरोजगारी के पूजा करके इही ला अपन भगवान बना लेहेंव। एक बेरोजगरिहा के दुःख ला, जम्मो छत्तीसगढ़ईया जवान मन जानत हे। कतका दुःख मन मा भरे हे ओखर, ए हर समान्य परिवार मन जानत हे। ओ हँसत खेलत मनखे के जिनगी हा, बेरोजगारी तले दबा गे हे। आँसू कतेक गिरतीस बपुरा के अब उहू घला सूखा गे हे, नेतागिरी अउ भ्रष्टाचारी मा हर युवा बेरोजगारी मा लपटा गेहे। रोजगारी काला कहिथे, ए शब्द ला तो हम छत्तीसगढ़िया मन भुला गे हन। बेरोज़गारी के कतेक किस्सा ला, मन के खीसा मा धरके ओखर दुःख ला भुलवा दे हन। -चन्द्रसेन कोरी #Kori #koribrother #alfaazayekori #shayarkori #koriwritesforupsc