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ज़िंदगी एक ऐसे बड़े पत्थर की तरह है जिसे सुन्दर बनान

ज़िंदगी एक ऐसे बड़े पत्थर की तरह है
जिसे सुन्दर बनाने के दो तरीके हैं

या तो इसे अभी से तरासना शुरू कर दो
या फिर टूटे टुकड़ों को समेटकर जोड़ना

तरासने में कुछ खोना पड़ सकता है और
जोड़ने के लिए कभी रोना पड़ सकता है

वक़्त और ज़िगर दोनों में लगेगा
पहले में साँचा बनने में,
दूसरे में साँचा बनाने में

किस तरफ रुख़ मुड़ेगा ज़िंदगी का
ये तो ज़िद की मशगूलियत पर है। ज़िंदगी भी ना एक बड़े से पत्थर की तरह है, इसे बनाने में तरासना या तोड़ना लाज़मी है
ज़िंदगी एक ऐसे बड़े पत्थर की तरह है
जिसे सुन्दर बनाने के दो तरीके हैं

या तो इसे अभी से तरासना शुरू कर दो
या फिर टूटे टुकड़ों को समेटकर जोड़ना

तरासने में कुछ खोना पड़ सकता है और
जोड़ने के लिए कभी रोना पड़ सकता है

वक़्त और ज़िगर दोनों में लगेगा
पहले में साँचा बनने में,
दूसरे में साँचा बनाने में

किस तरफ रुख़ मुड़ेगा ज़िंदगी का
ये तो ज़िद की मशगूलियत पर है। ज़िंदगी भी ना एक बड़े से पत्थर की तरह है, इसे बनाने में तरासना या तोड़ना लाज़मी है