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अतिथि देवो भवः ! भारत में होली दिवाली और ईद के

अतिथि देवो भवः !  

भारत में होली दिवाली और ईद के साथ एक और चीज़ है जो हर साल आती है । बरसती बूँदे कितनी ख़ूबसूरत होती है ना, झमाझम बारिश चाय की चुस्की के साथ गरमा गरम पकोड़े तो मज़ा आ जाए ना। लेकिन इन बूँदों की अधिकता अपने साथ ले आती है - बाढ़ ।

ऐसा नहीं है कि इसे बुलाया जाता है या फिर उसका कोई इंतज़ार करता है बल्कि इसे तो भर-भर के गालियाँ खानी पड़ती है मगर फिर भी इतनी ढीठ है कि हर साल मुँह उठाकर चली आती है। और सबसे अच्छी बात तो इस बाढ़ की यह है किसी धर्म विशेष  से संबंधित नहीं  बल्कि सर्वधर्म समभाव  रखने वाली है ।भारत के अधिकांश राज्य हर साल बाढ़ ग्रस्त हो जाते हैं ।अब यह सोचने वाली बात है कि हर साल आने वाली बाढ़ का स्वागत हम  करते कैसे हैं ? जैसा की होली दिवाली या फिर ईद के लिए हम छुट्टी का इंतज़ार करते हैं और पहले से ही तैयारियाँ करने लगते हैं कि क्या स्पेशल होगा इस दिन वैसे ही बाढ़ के लिए भी सरकारी अवकाश घोषित होता है। और  स्थानीय त्योहारों की तरह इसकी छुट्टी भी कहीं-कहीं होती है ,जहाँ पर बाढ़ देवी मेहरबान हो वही के बच्चे इसका लुत्फ उठा सकते हैं ।बाकी राज्यों के बच्चों को तो इन्हें टीवी में देख कर ही संतोष करना पड़ता है और वह भी तब जब न्यूज़ चैनलों को डिबेट से फुर्सत मिल जाती है ।बाढ़ मैया इतनी कृपा करती हैं कि क्या ही बताएँ इनकी महिमा का वर्णन मैं कर पाऊँ तौबा-तौबा अल्लाह माफ़ करें । छुट्टी तो घोषित होती ही है साथ ही जैसे अन्य त्योहारों में  सरकार से बोनस या फिर किसी प्रकार की सहायता कि हम उम्मीद नहीं रखते वैसे ही बाढ़ के आने के बाद भी सरकार से उम्मीद नामक  कोई चीज़ नहीं रख सकते।

 आज़ादी का 74 वाँ साल मना लिया बाढ़ हर साल आती है और सरकार चाहे कोई भी हो काम वही होता है । खैर इस लॉकडाउन  ने तो  बाढ़ वाली छुट्टियों का मज़ा ही किरकिरा कर दिया। अब बताओ इतने दिनों से घर में है की छुट्टियाँ भी अखरने लगी हैं ।वैसे इस दौरान महीनों घर पर ही बैठे नेताओं को इसी बहाने हेलीकॉप्टर राइटिंग का आनंद प्राप्त हुआ,लॉकडाउन में बाढ़ को मरुस्थल में जल के समान मान रहे हैं।इसके साथ ही बच्चों का तो वॉटर एडवेंचर पार्क बाढ़ में ही बन गया ।केवल बच्चों का ही नहीं बड़ों का भी और यह तो बिल्कुल रियलिस्टिक वाला एडवेंचर पार्क था जहाँ ज़िंदगी और मौत के बीच ख़ुद को बचाने की जद्दोजहद थी । और अन्य आपदाओं की तरह इसमें भी मदद करने वालों की कमी नहीं है सहायतायें आती हैं लेकिन जाती नहीं उन तक ,जिनको ज़रूरत है बीच के बिचौलिए  ऐसी आपदाओं का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं ।और करें भी क्यों ना किसी की बर्बादी तो किसी की  चाँदी।
अतिथि देवो भवः !  

भारत में होली दिवाली और ईद के साथ एक और चीज़ है जो हर साल आती है । बरसती बूँदे कितनी ख़ूबसूरत होती है ना, झमाझम बारिश चाय की चुस्की के साथ गरमा गरम पकोड़े तो मज़ा आ जाए ना। लेकिन इन बूँदों की अधिकता अपने साथ ले आती है - बाढ़ ।

ऐसा नहीं है कि इसे बुलाया जाता है या फिर उसका कोई इंतज़ार करता है बल्कि इसे तो भर-भर के गालियाँ खानी पड़ती है मगर फिर भी इतनी ढीठ है कि हर साल मुँह उठाकर चली आती है। और सबसे अच्छी बात तो इस बाढ़ की यह है किसी धर्म विशेष  से संबंधित नहीं  बल्कि सर्वधर्म समभाव  रखने वाली है ।भारत के अधिकांश राज्य हर साल बाढ़ ग्रस्त हो जाते हैं ।अब यह सोचने वाली बात है कि हर साल आने वाली बाढ़ का स्वागत हम  करते कैसे हैं ? जैसा की होली दिवाली या फिर ईद के लिए हम छुट्टी का इंतज़ार करते हैं और पहले से ही तैयारियाँ करने लगते हैं कि क्या स्पेशल होगा इस दिन वैसे ही बाढ़ के लिए भी सरकारी अवकाश घोषित होता है। और  स्थानीय त्योहारों की तरह इसकी छुट्टी भी कहीं-कहीं होती है ,जहाँ पर बाढ़ देवी मेहरबान हो वही के बच्चे इसका लुत्फ उठा सकते हैं ।बाकी राज्यों के बच्चों को तो इन्हें टीवी में देख कर ही संतोष करना पड़ता है और वह भी तब जब न्यूज़ चैनलों को डिबेट से फुर्सत मिल जाती है ।बाढ़ मैया इतनी कृपा करती हैं कि क्या ही बताएँ इनकी महिमा का वर्णन मैं कर पाऊँ तौबा-तौबा अल्लाह माफ़ करें । छुट्टी तो घोषित होती ही है साथ ही जैसे अन्य त्योहारों में  सरकार से बोनस या फिर किसी प्रकार की सहायता कि हम उम्मीद नहीं रखते वैसे ही बाढ़ के आने के बाद भी सरकार से उम्मीद नामक  कोई चीज़ नहीं रख सकते।

 आज़ादी का 74 वाँ साल मना लिया बाढ़ हर साल आती है और सरकार चाहे कोई भी हो काम वही होता है । खैर इस लॉकडाउन  ने तो  बाढ़ वाली छुट्टियों का मज़ा ही किरकिरा कर दिया। अब बताओ इतने दिनों से घर में है की छुट्टियाँ भी अखरने लगी हैं ।वैसे इस दौरान महीनों घर पर ही बैठे नेताओं को इसी बहाने हेलीकॉप्टर राइटिंग का आनंद प्राप्त हुआ,लॉकडाउन में बाढ़ को मरुस्थल में जल के समान मान रहे हैं।इसके साथ ही बच्चों का तो वॉटर एडवेंचर पार्क बाढ़ में ही बन गया ।केवल बच्चों का ही नहीं बड़ों का भी और यह तो बिल्कुल रियलिस्टिक वाला एडवेंचर पार्क था जहाँ ज़िंदगी और मौत के बीच ख़ुद को बचाने की जद्दोजहद थी । और अन्य आपदाओं की तरह इसमें भी मदद करने वालों की कमी नहीं है सहायतायें आती हैं लेकिन जाती नहीं उन तक ,जिनको ज़रूरत है बीच के बिचौलिए  ऐसी आपदाओं का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं ।और करें भी क्यों ना किसी की बर्बादी तो किसी की  चाँदी।