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देखा शाम के अंधेरे में खामोश निगाहें, दूर तक कुछ न

देखा शाम के अंधेरे में खामोश निगाहें,
दूर तक कुछ नही खामोशी के सिवा,
नजरे थोडी निचे गयीं तो पाया
 एक मासूम सा चेहरा  सूनी सी आंखों में
 उम्मीद की किरण लिए बेबसी के आसूं,
सिर पर एक साए की आशा करते हुए,
ढूंढ रहा था कोई भगवान का दूत,
कितनों ने दुतकारा कितनों ने फटकारा,
एक आशा लिए पैर थामते हुए सिर रख दिया,
उसकी बेबसी देखूं या उसकी मासूमियत,
दिल उस पर दया दिखाए या प्यार,
यहां इंसान इंसान का नही फिर भी कहते हैं,
हमें है मानवता से प्यार...
वो कह नही सकता लेकिन उसे भी मिल जाए 
थोडा सा दुलार शायद मुझसे ही सही...
इंसानों में कहां दिखता है ऐसा व्यवहार।

©Raj rajpoot
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