न हिंदू बनो न ही मुस्लमान बनो, पहले इक अच्छा इंसान तो बनो। पोछ सको किसी के आँख की आँसू, जिंदगी मे इक काबिल इंसान तो बनो ।। मजहब के नाम पर छोड़ दो बाँटना, किसी के काम आ सके इस लायक तो बनो ।। न हिंदू बनो न ही मुस्लमान बनो, पहले इक अच्छा इंसान तो बनो। न बाँट पाओगे चाँद , न जमी और न ही ये धरा, फिर मजहबों के नाम पर इंसानियत क्यों लड़ रहा जो खून बह रहा वो हर खून अपना है ये मजहबी बातें तो सिर्फ इक सपना है ।। भावनाओं मे बह कर अपनो से न बैर करो, कुछ करना है तो अपने अंदर की इंसानियत जिंदा करो हर गिरती हुई लाशें हमारे अपनो की होती है, चाहे वो हो हिंदू या मुस्लमान माँ सबकी रोती है ।। क्यों भेद कर रहे हो तूम जाती धर्म के नाम पर क्यों नहीं लड़ रहे इस मातृभूमि के सम्मान पर ।। बहुत हो चुका बस... अब तो लौट आओ अपने मुल्क के लिए सही पर संगठित हो जाओ ।। साथ मिलकर करो अब बस विकास की बातें जाति धर्म का भेदभाव अब बस मिताओ ।। न हिंदू बनो न ही मुस्लमान बनो, पहले इक अच्छा इंसान तो बनो। पोछ सको किसी के आँख की आँसू, जिंदगी मे इक काबिल इंसान तो बनो ।। मजहब के नाम पर छोड़ दो बाँटना, किसी के काम आ सके इस लायक तो बनो ।।