रुत आती है रुत जाती है, कुछ देती है कुछ ले जाती है, हर मौसम की है रीत यही, आवगमन से डर जाना कैसा। पतझड़ से घबराना कैसा।। जो आज है वो कल नहीं, जो बीते ही ना,वो पल नहीं, फिर बीतने के भय से ही, पल जीने से कतराना कैसा। पतझड़ से घबराना कैसा।। जो मिला है उसे बिछड़ना है, जीवन भर किसे संग चलना है, बिछड़ने के बस डर से ही, स्वयं छोड़ कर जाना कैसा। पतझड़ से घबराना कैसा।। जीवन बस एक प्रेम संगीत है, त्याग ही जिसका श्रेष्ठ गीत है, स्वार्थ मात्र में व्यर्थ कर इसे, अंतिम क्षणों में पछताना कैसा। पतझड़ से घबराना कैसा।। "पतझड़ से घबराना कैसा" #पतझड़ #कविता #घबराना #yqhindi #hindi #hindipoetry #hindiquotes