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आँखों में मंज़र कोई बसाया जाए, नफ़रत का काला धुआं

आँखों में मंज़र कोई बसाया जाए,
नफ़रत का काला धुआं हटाया जाए।

आलम कोई भी हो बदल जायेगा,
जाम लबों से कोई लगाया जाए।

कोई तो अपना भीड़ में आयेगा नज़र,
झुकी पलकों का फिर उठाया जाए।

शायद वो आये किसी रोज सजदा करने,
आँचल इसी उम्मीद से बिछाया जाए।

दिल से दुआ निकल आयेगी दोस्तों,
सिसकते होंठों को गर हंसाया जाए।

फर्ज इन्सान का यही कहता है - 'आस'
डूबते को साहिल से लगाया जाए।

#शुभ__रात्री

©Sumi
  #RoadTrip