आंधी चली है विरति की ,सुख न रहेंगे संग ! डोर तोड़ अनजान पथ ,उड़कर चली पतंग !! स्वार्थ के ही सब सगे ,बिन स्वार्थ न कोई नात ! जैसे पंछी आद्र विटप से ,पतझड़ में उड़ जात !! चलनी चलत समाज की , दौलत ,रूप निथार ! धर्म निकले जात है ,अधर्म को मिला अधिकार !! राजनीति के जातं में पिसता ,जवान औ किसान ! धर्म ,जाति,वर्ण और वर्ग में उलझा आज इंसान !! मन्दिर ,मस्जिद की मंजिले ,कितनी आलीशान ! मुझे मिला घर नही ,प्रभु तुझे इतना बड़ा मकान !! #सामाजिक_समालोचना #आंधी चली है #विरति की ,सुख न रहेंगे #संग ! #डोर तोड़ #अनजान पथ ,उड़कर चली #पतंग !! #स्वार्थ के ही सब सगे ,बिन स्वार्थ न कोई #नात ! जैसे #पंछी आद्र #विटप से ,#पतझड़ में उड़ जात !!