05-03-2018 एक तारा, जो बोहोत बड़ा होता है, जीवन रेखा का मध्य होता है। उसमें अपनी और आकर्षित करने की इतनी क्षमता होती है कि कई ग्रहों को अपनी शक्ति में जकड़ कर रखता है। बोहोत तेज भी होता है उसमें, लाखों करोड़ों मीलों दूर से भी रोशनी फैलाता है। ग़ुरूर तो होगा ही इतनी ताक़त जो है। मगर वो एक बात शायद भूल जाता है, क़ायनात का एक छोटा सा हिस्सा है वो, रेगिस्तान में एक छोटे से कण जैसा। ज़मीन से बोहोत ऊंचा रुतबा, शान और आकार। मगर, जब गिरता है, तो ज़मीन पर ही आता है। टूटता है तो मंज़िल ज़मीन होती है। अफ़सोस ज़मीन से इतनी दूरियां बढ़ गईं, वहां तक पोहोंच भी नहीं पाता और जल जाता है। मैं ज़मीन नहीं हूं और न औक़ात है मेरी, मगर थाम लूंगा तुम्हें, आसमान से गिरना। मेरी नज़रों से नहीं। ~Hilal #EkTara