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आ जाये ज़िंदगी किसी के काम यहाँ कोई कह दे वो फरिश्त

आ जाये ज़िंदगी किसी के काम यहाँ
कोई कह दे वो फरिश्ता, मैं ही हूँ ।

जाने किसके लिए हूँ बना वो है कहाँ
एक जो हो करीबी, वो रिश्ता मैं ही हूँ ।

हर शख़्स को है शिकायतें कहीं
वो एक बेदाग़दार किस्सा, मैं ही हूँ।

कहीं अंधेरे में भी खिलता है 
वो एक बहार-ए-गुलिस्तां, मैं ही हूँ ।

मंजिल भी रहती है कुछ ख़फ़ा सी
वो एक खुशनुमा इंसा, मैं ही हूँ ।

मेरी पहचान यही है की इस जँहा
मुझसा एक है केवल, वो मैं ही हूँ ।

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