मानवाधिकार,........!!! यह शब्द सुनकर यकायक ही हंसी आ जाती है। क्योंकि आज की तारीख में इस महान शब्द की प्रासंगिकता की धज्जियाँ उड़ाई जा रही है। एक मानव दूसरे मानव को मानव समझता ही कहाँ है। मन में बस द्वेष और जलस की भावनाओं के साथ जी रहे हैं सभी मानव। दरअसल जानवर से भी बदतर बने जा रहे हैं। क्योंकि खाना पीना, मल करना और भोगविलास तो जानवर भी कर ही लेते हैं मानवों की तरह। खैर, मानव दूसरे मानव को मानव समझेगा। तब जाकर एक दूसरे के अधिकारों के संरक्षण के बारे में विचार किया जा सकता है। तब हम मानवाधिकार की बात कर सकते हैं। और इसके लिए अतिआवश्यक है कि उन धूर्त नेताओं की बातों में ना आएं जो धर्म और वर्ग के आधार पर लड़वाकर अपने स्वार्थ सिद्ध करते हैं। पहले इनकी अनर्गल बातों का असर मात्र अनपढ़ गंवार लोगों पर ही होता था परंतु अब यह जहर दुर्भाग्य से पढ़े लिखे लोगों के दिमाग पर भी असर कर रहा है। मानवाधिकार चाहिए तो इन धूर्त नेताओं से प्रभावित न होकर गंभीरता से एक दूसरे के सम्मान का विचार रखें। सफलता अवश्य मिलेगी। जय हिन्द #Human Rights