लैला का मजनू था,अब बंदी का बंदा है। ये प्यार पहले अंधा था अब बस धंधा है। ना जाने कौन थे सिकंदर,दुनिया जीतते थे। आजकल सब के ही तो मुह में रजनीगंधा है। अबकी है जो सबकी असलियत मालूम होगी। ये तेरे खुद के पैर हैं,थोड़े ही बाप का कंधा है। ये मर-मर के जीना और फिर जीने को मारना । कभी कोशिश,कभी आदत,कभी हथकंडा है। लैला का मजनू था,अब बंदी का बंदा है। ये प्यार पहले अंधा था अब बस धंधा है। ना जाने कौन थे सिकंदर,दुनिया जीतते थे। आजकल सब के ही तो मुह में रजनीगंधा है। अबकी है जो सबकी असलियत मालूम होगी। ये तेरे खुद के पैर हैं,थोड़े ही बाप का कंधा है।