संवारने के जां चक्करों में पहेलियों से उलझ पड़े है, ये काली जुल्फों के जाल मेरी उंगलियों से उलझ पड़े है, सुना है जब से के इन लकीरों में तेरा कोई निशां नहीं है, सभी नजूमी से थक के अपनी हथेलियों से उलझ पड़े है !! ©Maqbul Alam संवारने के जां चक्करों में पहेलियों से उलझ पड़े है, ये काली जुल्फों के जाल मेरी उंगलियों से उलझ पड़े है, सुना है जब से के इन लकीरों में तेरा कोई निशां नहीं है, सभी नजूमी से थक के अपनी हथेलियों से उलझ पड़े है !! #Shayari #urdu_poetry #Poetry