मुखड़ा है जैसे पूर्णिमा के चंद्रमा की छवि देहयष्टि जैसे पारिजात है, कसम से! चंचल हंसी में मीठी कूक किसी कोयल सी वाणी में सुरों की बरसात है, कसम से! घोर कालिमा से काले काले काले कुंतल हैं काले केश हैं या काली रात है, कसम से! गोरे रंग से भी गोरी, गोरी गोरी इतनी की तुलना में गोरा रंग मात है, कसम से! Written By Late. Dewal Ashish Ji ©Shushobhit Garg #देवल_के_छंद #DewalAshish_Poetry #Shushobhit_Poetry