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#वंचित_स्वप्न जब से थामी है कलम वंचित स्वप्नों म


#वंचित_स्वप्न

जब से थामी है कलम वंचित स्वप्नों में हुआ स्पंदन
नई राह पर बढ़े कदम पुलकित हुआ मेरा अन्तर्मन
सबके स्वप्नों में दम तोड़ रहे थे मेरे वंचित स्वप्न
एक गृहणी में छिपा था कहीं एक कवि मन
एक स्त्री निभाती है भूमिकायें कई
ये सोच कोशिशों की राह पर निकल पड़ी
गोल रोटी पर कवितायें लिखी
आचार की बरनियों पर कहानी गढ़ी
आँगन की फुलवारी में कणिकाएं रची
अलमारियों पर नज़्म पढ़ी
अपने सपनों संग कुछ और आगे बढ़ी
अब सोफे पर कुशन सजाते गुनगुनाती हूँ
चादर की सलवटों से भी गीत चुरा लाती हूँ 
दहलीज़ के पायदान पर शेर-ओ-शायरी लिख आती हूँ
हाथों में थाम सुनहली डोर
अपनी पतंग खुद उड़ाने लगी हूँ
धीरे धीरे ही सही
मैं अपने सपने पूरे करने लगी हूँ।

©Rajni Sardana
  #वंचित_स्वप्न
#khwaab